1-ग़ज़ल/महेश अग्रवाल
हार किसकी है और किसकी फतह कुछ सोचिये।
जंग है ज्यादा जरुरी या सुलह कुछ सोचिये।
यूं बहुत लम्बी उडा़नें भर रहा है आदमी,
पर कहीं गुम हो गई उसकी सतह कुछ सोचिये।
मौन है इन्सानियत के कत्ल पर इन्साफ-घर,
अब कहाँ होगी भला उस पर जिरह कुछ सोचिये।
अब कहाँ ढूँढें भला अवशेष हम इमान के,
खो गई सम्भावना वाली जगह कुछ सोचिये।
दे न पाये रोटियाँ बारूद पर खर्चा करे,
या खुदा अब बन्द हो ऐसी कलह कुछ सोचिये।
आदमी ’इन्सान’ बनकर रह नहीं पाया यहाँ,
क्या तलाशी जायेगी इसकी वजह कुछ सोचिये।
पता-71,लक्ष्मी नगर,रायसेन रोड
भोपाल-462021 म.प्र.
मो.-9229112607
------------------------------------------
2-ग़ज़ल/कृष्ण सुकुमार
भड़कने की पहले दुआ दी गयी थी।
मुझे फिर हवा पर हवा दी गयी थी।
मैं अपने ही भीतर छुपा रह गया हूँ,
ये जीने की कैसी अदा दी गयी थी।
बिछु्ड़ना लिखा था मुकद्दर में जब तो,
पलट कर मुझे क्यों सदा दी गयी थी।
अँधेरों से जब मैं उजालों की जानिब
बढा़,शम्मा तब ही बुझा दी गयी थी।
मुझे तोड़ कर फिर से जोडा़ गया था,
मेरी हैसियत यूँ बता दी गयी थी।
सफर काटकर जब मैं लौटा तो पाया,
मेरी शख्सियत ही भुला दी गयी थी।
गुनहगार अब भी बचे फिर रहे हैं,
तो सोचो किसे फिर सज़ा दी गयी थी।
पता-193/7,सोलानी कुंज,
भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान,
रुड़की-247667[उत्तराखण्ड]
--------------------------------
3-ग़ज़ल/माधव कौशिक
खुशबुओं को जुबान मत देना।
धूप को जुबान सायबान मत देना।
अपना सब कुछ तो दे दिया तुमने,
अब किसी को लगान मत देना।
कोई रिश्ता ज़मीन से न रहे,
इतनी ऊँची उडा़न मत देना।
उनके मुंसिफ़,अदालतें उनकी,
देखो,सच्चा बयान मत देना।
जिनके तरकश में कोई तीर नहीं,
उनको साबुत कमान मत देना।
पता-1110,सेक्टर-41-बी
चण्डीगढ़-160036
-----------------------
4-ग़ज़ल/मुफ़लिस लुधियानवी
हर मुखौटे के तले एक मुखौटा निकला।
अब तो हर शख्स के चेहरे ही पे चेहरा निकला।
आजमाईश तो गलत-फ़हमी बढा़ देती है,
इम्तिहानों का तो कुछ और नतीजा निकला।
दिल तलक जाने का रास्ता भी तो निकला दिल से,
ये शिकायत तो फ़क़त एक बहाना निकला।
सरहदें रोक न पायेंगी कभी रिश्तों को,
खुशबुओं पर न कभी कोई भी पहरा निकला।
रोज़ सड़कों पे गरजती है ये दहशत-गर्दी,
रोज़,हर रोज़ शराफत का जनाज़ा निकला।
तू सितम करने में माहिर,मैं सितम सहने में,
ज़िन्दगी!तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला।
यूँ तो बाज़ार की फ़ीकी़-सी चमक सब पर है,
गौर से देखा तो हर शख्स ही तन्हा निकला।
पता-614/33 शाम नगर,
लुधियाना-141001
---------------------------------
5-ग़ज़ल/गिरधर गोपाल गट्टानी
किसने रौंदी ये फुलवारियाँ।
मेरी केशर-पगी क्यारियाँ।
हमको कैसा पडो़सी मिला,
दे रहा सिर्फ दुश्वारियाँ।
तेग की धार पर टाँग दी,
नौनिहालों की किलकारियाँ।
हमको कैसे मसीहा मिले,
बढ़ रही रोज़ बीमारियाँ।
छोड़िये भी, न अब कीजिये,
दुश्मनों की तरफ़दारियाँ।
पता-मातृ छाया,
मुख्य मार्ग,बैरसिया,
भोपाल[म.प्र.]
Excellent Ghazal. Kudos to writer & Prasanna. Please Keep it up.
ReplyDeleteprasannji namaskaar .
ReplyDeletesamkaaleen gazal par mujhe aap logoN ne jagah di hai, iske liye maiN aap sb ka bahut aabhaari hooN....
aapka prayaas saraahneey hai
badhaaee svikaareiN.
---MUFLIS---