समकालीन ग़ज़ल,ग़ज़ल पर केन्द्रित एक प्रतिनिधि पत्रिका है जिसमें जून २००९ से हर माह अपने समय के सरोकारों से जुडी़ हुई रचनायें ही प्रकाशित होंगी। इसमें शामिल रचनाकारों के लिये ये जरूरी है कि वे रचनायें भेजते समय ग़ज़ल के शिल्प और छन्दानुशासन का पूरा ध्यान रखें।
सभी ग़ज़लकार मित्रों से यह आग्रह है कि वे अपनी उम्दा रचनायें ई मेल द्वारा - pbchaturvedi@in.com पर भेज सकते हैं|नोट:-एक शायर स्तम्भ में एक ही ग़ज़लकार की कई रचनायें हर माह प्रकाशित होंगी। इसमें शामिल होने के लिये ये आवश्यक है कि ग़ज़लकार अपनी दस मौलिक रचनाओं के साथ अपना एक फ़ोटो एवं संक्षिप्त जीवन परिचय अवश्य प्रेषित करें।
फ़ुलवारी स्तम्भ में कई ग़ज़लकारों की एक-एक रचना प्रकाशित होंगी।चुनिन्दा शेर स्तम्भ में चुने हुए कुछ ऐसे शेर प्रकाशित होंगे,जो अपने आप में पूर्ण होंगे।
विभिन्न शायरों के कुछ चुनिन्दा शेर-
१-विज्ञान व्रत -
मैं कुछ बेहतर ढूढ़ रहा हूँ।
घर में हूँ घर ढूढ़ रहा हूँ।
२-अश्वघोष-
मुझमें एक डगर ज़िन्दा है।
यानी एक सफ़र ज़िन्दा है।
३-ज्ञान प्रकाश विवेक-
किसी के तंज़ का देता न था जवाब मगर,
ग़रीब आदमी दिल में मलाल रखता था।
४-जयकृष्ण राय’तुषार’-
भँवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफ़िर हैं,
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं।
५-बालस्वरूप राही-
सीधे-सच्चे लोगों के दम पर ही दुनिया चलती है,
हम कैसे इस बात को मानें कहने को संसार कहे।
vichaar to achchha hai. kaamyaabi ki dua kartaa hoon !
ReplyDeleteshubhkaamnayen sweekaren.
ReplyDeleteएक बेहतर प्रयास...
ReplyDeletelage raho
ReplyDeletethik hai. narayan narayan
ReplyDeleteबेहतर प्रयास
ReplyDeleteswaagat hai...
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